निशा में सित हर्म्य में सुख नींद में सोई सुघरवर
योषिताओं के बदन को बार-बार निहार कातर
चन्द्रमा चिर काल तक, फिर रात्रिक्षय में मलिन होकर
लाज में पाण्डुर हुआ-सा है विलम जाता चकित उर
प्रिये ! आया ग्रीष्म खरतर !
निशा में सित हर्म्य में सुख नींद में सोई सुघरवर
योषिताओं के बदन को बार-बार निहार कातर
चन्द्रमा चिर काल तक, फिर रात्रिक्षय में मलिन होकर
लाज में पाण्डुर हुआ-सा है विलम जाता चकित उर
प्रिये ! आया ग्रीष्म खरतर !