दग्ध भोगी तृषित बैठे छत्र से फैला विकल फन
निकल सर से कील भीगे भेक फन-तल स्थित अयमन,
निकाले सम्पूर्ण जाल मृणाल करके मीन व्याकुल,
भीत द्रुत सारस हुए, गज परस्पर घर्षण करें चल,
एक हलचल ने किया पंकिल सकल सर हो तृषातुर,
प्रिये आया ग्रीष्म खरतर!
दग्ध भोगी तृषित बैठे छत्र से फैला विकल फन
निकल सर से कील भीगे भेक फन-तल स्थित अयमन,
निकाले सम्पूर्ण जाल मृणाल करके मीन व्याकुल,
भीत द्रुत सारस हुए, गज परस्पर घर्षण करें चल,
एक हलचल ने किया पंकिल सकल सर हो तृषातुर,
प्रिये आया ग्रीष्म खरतर!