रवि प्रभा से लुप्त शिर-मणि-प्रभा जिसकी फणिधर
लोल जिहव, अधिर मारुत पी रहा, आलीढ़
सूर्य्य ताप तपा हुआ विष अग्नि झुलसा आर्त्त कातर
त॓षाकुल मण्डूक कुल को मारता है अब न विषधर
प्रिये आया ग्रीष्म खरतर!
रवि प्रभा से लुप्त शिर-मणि-प्रभा जिसकी फणिधर
लोल जिहव, अधिर मारुत पी रहा, आलीढ़
सूर्य्य ताप तपा हुआ विष अग्नि झुलसा आर्त्त कातर
त॓षाकुल मण्डूक कुल को मारता है अब न विषधर
प्रिये आया ग्रीष्म खरतर!