- लो प्रिये हेमन्त आया!
सुरत श्रम से पाण्डु कृश मुख हो चले, नव रूप धर कर,
तरुण कामी पा रहे हैं हर्ष का उत्कर्ष मनहर,
दसन से क्षत ओष्ठ पीड़ित हो गए हैं केलि करते,
इसलिए वे उच्चारण विमुक्त होकर है न करते
रति चतुरस्त्री ने उसे मुस्कान में अपनी छिपाया,
- लो प्रिये हेमन्त आया!