- प्रिये ! आई शरद लो वर!
कास कुसुमों से मही औ" चन्द्र किरणों से रजनी को
हंस से सरिता-सलिल औ" कुमुद से सरवर-सुरम को,
कुमुद भार विनीवसप्तच्छदों से उन वनान्तों को
शुक्ल करती, प्रतिदिशा में दीप्ति फैला अमल शुचितर,
- प्रिये ! आई शरद लो वर!
कास कुसुमों से मही औ" चन्द्र किरणों से रजनी को
हंस से सरिता-सलिल औ" कुमुद से सरवर-सुरम को,
कुमुद भार विनीवसप्तच्छदों से उन वनान्तों को
शुक्ल करती, प्रतिदिशा में दीप्ति फैला अमल शुचितर,