जुज़[1] क़ैस[2] और कोई न आया बरूए-कार[3]
सहरा मगर बतंगी-ए-चश्मे-हसूद[4] था
आशुफ़्तगी[5] ने नक़्शे-सवैदा[6] किया दुरुस्त
ज़ाहिर हुआ कि दाग़ का सरमाया दूद[7] था
था ख़्वाब में ख़याल को तुझसे मुआमला[8]
जब आँख खुल गई न ज़ियां[9] था न सूद[10] था
लेता हूँ मकतबे-ग़मे-दिल[11] में सबक़ हनूज़[12]
लेकिन यही कि 'रफ़्त'[13]-'गया', और 'बूद'[14]-था
ढाँपा कफ़न ने दाग़े-अ़यूबे-बरहनगी[15]
मैं वर्ना हर लिबास में नंगे-वजूद[16] था
तेशे[17] बग़ैर मर न सका कोहकन[18] 'असद'
सरगश्ता-ए[19] ख़ुमारे-रुसूम-ओ-क़यूद[20] था
शब्दार्थ:
- ↑ सिवाय
- ↑ लैला
का प्रेमी - ↑ मौके पर सामने आना
- ↑ ईर्ष्यालुओं की आँख की तरह तंग
- ↑ विचलित होना
- ↑ दिल के दाग़ का चिन्ह
- ↑ धुआँ
- ↑ लेन-देन
- ↑ हानि
- ↑ फायदा
- ↑ दिल के ग़म की पाठशाला
- ↑ अभी भी
- ↑ फारसी में 'गया' का मतलब
- ↑ फारसी में 'था' का मतलब
- ↑ नग्नता का दोष
- ↑ अस्तित्व का कलंक
- ↑ कुल्हाड़ी
- ↑ फ़रहाद,शीरीं का प्रेमी
- ↑ बुद्धु बना हुआ
- ↑ रीति-रिवाज के नशे में