दहर[1] में नक़्श-ए-वफ़ा वजह-ए-तसल्ली न हुआ
है यह वो लफ़्ज़ कि शर्मिन्दा-ए-माअ़नी[2] न हुआ
सब्ज़ा-ए-ख़त[3] से तेरा काकुल-ए-सरकश[4] न दबा
यह ज़मुर्रद[5] भी हरीफ़े-दमे-अफ़ई[6] न हुआ
मैंने चाहा था कि अन्दोह[7]-ए-वफ़ा से छूटूं
वह सितमगर मेरे मरने पे भी राज़ी न हुआ
दिल गुज़रगाह[8]-ए-ख़याले-मै-ओ-साग़र[9] ही सही
गर नफ़स[10] जादा-ए-सर-मंज़िल-ए-तक़वी[11] न हुआ
हूँ तेरे वादा न करने में भी राज़ी कि कभी
गोश[12] मिन्नत-कशे[13]-गुलबांग-ए-तसल्ली[14] न हुआ
किससे महरूमी-ए-क़िस्मत[15] की शिकायत कीजे
हम ने चाहा था कि मर जाएं, सो वह भी न हुआ
मर गया सदमा-ए-यक-जुम्बिशे-लब[16] से ग़ालिब
ना-तवानी[17] से हरीफ़[18]-ए-दम-ए-ईसा[19] न हुआ
शब्दार्थ:
- ↑ संसार
- ↑ सार्थक
- ↑ गालों पर आती नई दाढ़ी
- ↑ (यहाँ पुरुष की)ज़ुल्फ की लट
- ↑ नीलम (पत्थर)
- ↑ साँप की फुंकार के बराबर
- ↑ दुःख
- ↑ राही
- ↑ शराब और प्याला की सोच
- ↑ सांस
- ↑ भक्ति की मंजिल का रास्ता
- ↑ कान
- ↑ आभारी
- ↑ सांत्वना की मधुर ध्वनि
- ↑ दुर्भाग्य
- ↑ एक बार होंठ हिलने का सदमा
- ↑ दुर्बलता
- ↑ सामना करना
- ↑ ईसा की साँस