सताइश[1]-गर है ज़ाहिद[2] इस क़दर जिस बाग़े-रिज़वां[3] का
वह इक गुलदस्ता है हम बेख़ुदों के ताक़े-निसियां[4] का
बयां क्या कीजिये बेदादे-काविश-हाए-मिज़गां[5] का
कि हर इक क़तरा-ए-ख़ूं दाना है तस्बीहे-मरजां[6] का
न आई सतवते-क़ातिल[7] भी मानअ़[8] मेरे नालों[9] को
लिया दांतों में जो तिनका, हुआ रेशा[10] नैस्तां[11] का
दिखाऊंगा तमाशा, दी अगर फ़ुरसत ज़माने ने
मेरा हर दाग़-ए-दिल इक तुख्म[12] है सर्व[13]-ए-चिराग़ां का
किया आईनाख़ाने का वो नक़्शा तेरे जल्वे ने
करे जो परतव[14]-ए-ख़ुरशीद-आलम[15] शबनमिस्तां[16] का
मेरी तामीर[17] में मुज़्मिर[18] है इक सूरत ख़राबी की
हयूला[19] बरक़-ए-ख़िरमन[20] का है ख़ून-ए-गरम दहक़ां[21] का
उगा है घर में हर-सू[22] सब्ज़ा[23], वीरानी, तमाशा कर
मदार[24] अब खोदने पर घास के, है मेरे दरबां का
ख़मोशी में निहां[25] ख़ूंगश्ता[26] लाखों आरज़ूएं हैं
चिराग़-ए-मुरदा[27] हूं मैं बेज़ुबां गोर-ए-ग़रीबां[28] का
हनूज़[29] इक परतव-ए-नक़्श-ए-ख़याल-ए-यार[30] बाक़ी है
दिल-ए-अफ़सुर्दा[31] गोया हुजरा[32] है यूसुफ़ के ज़िन्दां[33]का
बग़ल में ग़ैर की आप आज सोते हैं कहीं, वरना
सबब[34] क्या? ख़्वाब में आकर तबस्सुम-हाए-पिनहां[35] का
नहीं मालूम किस-किसका लहू पानी हुआ होगा!
क़यामत है सरश्क-आलूदा होना[36] तेरी मिज़गां[37] का
नज़र में है हमारी जादा-ए-राह-ए-फ़ना[38] ग़ालिब
कि ये शीराज़ा[39] है आ़लम के अज्जाए-परीशां[40] का
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