दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा[1] न हुआ
मैं न अच्छा हुआ, बुरा न हुआ

जमा करते हो क्यों रक़ीबों को?
इक तमाशा हुआ गिला न हुआ

हम कहां क़िस्मत आज़माने जाएं?
तू ही जब ख़ंजर-आज़मा[2] न हुआ

कितने शीरीं हैं तेरे लब! कि रक़ीब
गालियां खाके बे-मज़ा न हुआ

है ख़बर गर्म उनके आने की
आज ही घर में बोरिया न हुआ

क्या वो नमरूद[3] की ख़ुदाई थी
बंदगी[4] में मेरा भला न हुआ

जान दी, दी हुई उसी की थी
हक़[5] तो यूं है, कि हक़[6] अदा न हुआ

ज़ख़्म गर दब गया, लहू न थमा
काम गर रुक गया रवां[7] न हुआ

रहज़नी[8] है कि दिल-सितानी[9] है?
लेके दिल दिलसितां[10] रवाना हुआ

कुछ तो पढ़िये कि लोग कहते हैं
"आज 'ग़ालिब' ग़ज़लसरा[11] न हुआ"

शब्दार्थ:
  1. दवा का आभारी
  2. ख़ंजर चलाने वाला
  3. एक प्राचीन राजा जो अपने-आप को खुदा कहता था
  4. पूजा
  5. सच
  6. दावा
  7. चलना,चालू
  8. डाका
  9. दिल की चोरी
  10. दिल का चोर
  11. ग़ज़ल सुनाने वाला
Please join our telegram group for more such stories and updates.telegram channel