गिला है शौक़ को दिल में भी तंगी-ए-जा[1] का
गुहर[2] में महव[3] हुआ इज़्तराब[4] दरिया का
ये जानता हूँ कि तू और पासुख़-ए-मकतूब[5]
मगर सितमज़दा[6] हूँ ज़ौक़े-ख़ामा-फ़र्सा[7]का
हिना-ए-पा-ए-ख़िज़ां[8] है बहार, अगर है यही
दवाम[9] क़ुल्फ़ते-ख़ातिर[10] है ऐश दुनिया का
ग़मे-फ़िराक़[11] में तकलीफ़-सैरे-गुल[12] न दो
मुझे दिमाग़[13] नहीं ख़न्दा-हाए-बेजा[14] का
हनूज़[15] महरमी-ए-हुस्न[16] को तरसता हूँ
करे है हर बुने-मू[17] काम चश्मे-बीना[18] का
दिल उसको पहले ही नाज़ो-अदा से दे बैठे
हमें दिमाग़ कहां हु्स्न के तक़ाज़ा का
न कह कि गिरिया[19] बमिक़दारे-हसरते-दिल[20] है
मेरी निगाह में है जमओ़-ख़रज[21] दरिया का
फ़लक को देखके करता हूँ उसको याद ‘असद’
जफ़ा[22] में उसकी है अन्दाज़[23] कारफ़रमा[24] का
शब्दार्थ:
- ↑ जगह की तंगी
- ↑ मोती
- ↑ लीन
- ↑ तड़प
- ↑ ख़त का जवाब
- ↑ सताया हुआ
- ↑ कलम घिसने की आदत
- ↑ पतझड़ के पैरों की मेंहदी
- ↑ हमेशा
- ↑ दुख, क्लेश के लिए
- ↑ विरह के दु:ख
- ↑ गुलाबों में सैर का कष्ट
- ↑ मन
- ↑ अकारण हँसना
- ↑ अभी
- ↑ रूप से परिचय
- ↑ बाल की जड़
- ↑ देख सकने वाली आँख
- ↑ रुदन
- ↑ दिल की हसरत के अनुपात से
- ↑ उतार-चढ़ाव
- ↑ गुस्से
- ↑ ढंग
- ↑ हुकमदान