घर हमारा जो न रोते भी तो वीरां[1] होता
बहर[2] गर बहर न होता तो बयाबां[3] होता
तंगी-ए-दिल का गिला क्या ये वो काफ़िर दिल है
कि अगर तंग न होता, तो परेशां होता
बादे-यक उम्र-वराअ[4] बार[5] तो देता बारे[6]
काश, रिज़्वां[7] ही दर-ए-यार का दरबां होता
शब्दार्थ:
- ↑ बरबाद
- ↑ समुद्र
- ↑ उज़ाड़,रेगिस्तान
- ↑ उम्र भर के संयम का बाद
- ↑ प्रवेश-आज्ञा
- ↑ ज़रूर
- ↑ स्वर्ग का दरबान