सद जल्वा रू-ब-रू है जो मिज़्गाँ उठाइए
ताक़त कहां कि दीद का इहसां उठाइये

है संग पर बरात-ए-मआश-ए-जुनून-ए-इश्क़
यानी हनूज़ मिन्नत-ए-तिफ़लां उठाइये

दीवार बार-ए मिननत-ए मज़दूर से है ख़म
ऐ ख़ान-मां-ख़राब न इहसां उठाइये

या मेरे ज़ख़म-ए-रशक को रुसवा न कीजिये
या पर्दा-ए-तबस्सुम-ए-पिनहां उठाइये

हस्ती फ़रेब-नामह-ए मौज-ए-सराब है
यक उमर नाज़-ए शोख़ी-ए-उनवां उठाइये

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