इश्क़ मुझको नहीं, वहशत[1] ही सही
मेरी वहशत, तेरी शोहरत ही सही
क़तअ़[2] कीजे न तअ़ल्लुक़[3] हम से
कुछ नहीं है, तो अ़दावत[4] ही सही
मेरे होने में है क्या रुस्वाई?
ऐ वो मजलिस[5] नहीं ख़िल्वत[6] ही सही
हम भी दुश्मन तो नहीं हैं अपने
ग़ैर को तुझ से मुहब्बत ही सही
अपनी हस्ती ही से हो, जो कुछ हो
आगही[7] गर नहीं ग़फ़लत[8] ही सही
उम्र हरचंद कि है बर्क़-ख़िराम[9]
दिल के ख़ूँ करने की फ़ुर्सत ही सही
हम कोई तर्क़-ए-वफ़ा[10] करते हैं
न सही इश्क़ मुसीबत ही सही
कुछ तो दे, ऐ फ़लक[11]-ए-नाइन्साफ़
आह-ओ-फ़रिय़ाद की रुख़सत ही सही
हम भी तस्लीम[12] की ख़ू[13] डालेंगे
बेनियाज़ी[14] तेरी आदत ही सही
यार से छेड़ चली जाये, "असद"
गर नहीं वस्ल तो हसरत ही सही
शब्दार्थ: