जो न नक़्दे-दाग़े-दिल[1] की करे शोला[2] पासबानी[3]
तो फ़ुसुर्दगी[4] निहां[5] है, ब कमीने[6]-बे-ज़बानी
मुझे उस से क्या तवक़्क़ो[7] ब ज़माना-ए-जवानी[8]
कभी कूदकी[9] में जिस ने न सुनी मेरी कहानी
यूं ही दुख किसी को देना नहीं ख़ूब[10], वरना कहता
कि मेरे अ़दू[11] को या रब मिले मेरी ज़िंदगानी
शब्दार्थ:
- ↑ दिल के ज़ख्म रूपी मुद्रा
- ↑ आंच
- ↑ रखवाली
- ↑ दुख
- ↑ छुपा हुआ
- ↑ घात में
- ↑ उम्मीद
- ↑ जवानी का वक्त
- ↑ बचपन
- ↑ अच्छा
- ↑ दुश्मन