पा-ब दामन[1] हो रहा हूँ, बस कि मैं सहरा-नवर्द[2]
ख़ार-ए-पा[3] हैं जौहर[4]-ए आईना-ए-ज़ानू[5] मुझे
देखना हालत मेरे दिल की हम-आग़ोशी के वक़्त
है निगाह-ए-आशना[6] तेरा सर-ए-हर-मू[7] मुझे
हूँ सरापा[8] साज़-ए-आहंग-ए-शिकायत[9] कुछ न पूछ
है यही बेहतर कि लोगों में न छेड़े तू मुझे
शब्दार्थ:
- ↑ कपड़ों में उलझते पैर
- ↑ रेगिस्तान में भटकने वाला
- ↑ काँटो भरे पैर
- ↑ चमकाने के निशान
- ↑ घुटना स्वरूपी शीशा
- ↑ पहचाना सा दृश्य
- ↑ सर के हर एक बाल का सिरा
- ↑ पूरी तरह
- ↑ शिकायत की धुन सुनाने वाला बाजा