चाहिये, अच्छों को जितना चाहिये
ये अगर चाहें, तो फिर क्या चाहिये
सोहबत-ए-रिन्दां[1] से वाजिब[2] है हज़र[3]
जा-ए-मै[4] अपने को खेंचा चाहिये[5]
चाहने को तेरे क्या समझा था दिल
बारे[6], अब इस से भी समझा चाहिये
चाक मत कर जैब[7] बे-अय्याम-ए-गुल[8]
कुछ उधर का भी इशारा चाहिये
दोस्ती का पर्दा है बेगानगी
मुंह छुपाना हम से छोड़ा चाहिये
दुश्मनी में मेरी खोया ग़ैर को
किस क़दर दुश्मन है, देखा चाहिये
अपनी, रुस्वाई में क्या चलती है सअई[9]
यार ही हंगामाआरा[10] चाहिये
मुन्हसिर[11] मरने पे हो जिस की उमीद[12]
नाउमीदी[13] उस की देखा चाहिये
ग़ाफ़िल[14], इन महतलअ़तों[15] के वास्ते
चाहने वाला भी अच्छा चाहिये
चाहते हैं ख़ूब-रुओं[16] को, "असद"
आप की सूरत तो देखा चाहिये
शब्दार्थ: