चाक[1] की ख़्वाहिश, अगर वहशत ब-उरियानी[2] करे
सुबह के मानिन्द ज़ख़्म-ए-दिल गिरेबानी[3] करे
जल्वे का तेरे वह आ़लम है कि गर कीजे ख़याल
दीदा-ए दिल को ज़ियारत-गाह-ए[4] हैरानी करे
है शिकस्तन[5] से भी दिल नौमीद[6] या रब कब तलक
आब-गीना[7] कोह[8] पर अ़रज़-ए गिरां[9]-जानी करे
मै-कदा गर चश्म-ए-मस्त-ए-नाज़[10] से पावे शिकसत
मू-ए-शीशा[11] दीदा-ए-साग़र[12] की मिज़ग़ानी[13] करे
ख़त्त-ए-आ़रिज़[14] से लिखा है, ज़ुल्फ़ को उल्फ़त ने अ़हद[15]
यक-क़लम मंज़ूर है, जो कुछ परेशानी करे
शब्दार्थ: