फ़रियाद की कोई लै[1] नहीं है
नाला[2] पाबनद-ए-नै[3] नहीं है
क्यूं बोते हैं बाग़-बान तूंबे[4]
गर बाग़ गदा-ए-मै[5] नहीं है
हर-चन्द[6] हर एक शै में तू है
पर तुझ-सी कोई शै नहीं है
हाँ, खाइयो मत फ़रेब-ए-हस्ती[7]
हर-चन्द कहें कि 'है', नहीं है
शादी[8] से गुज़र, कि ग़म न रहवे
उरदी[9] जो न हो, तो दै[10] नहीं है
क्यूं रद्द-ए-क़दह[11] करे है, ज़ाहिद[12]
मै है ये, मगस[13] की क़ै[14] नहीं है
हस्ती है न कुछ अ़दम[15] है 'ग़ालिब'
आख़िर तू क्या है, ऐ, 'नहीं' है
शब्दार्थ: