उलझी उलझी राहें हों

ऊँची नीची चाहे हो

बाई-खन्दक. नारे हों

गोली हो या भाले हो

हमको कुछ परवाह नहीं!

 

हमको तो आगे बढ़ना

पर्वत की चोटी चढ़ना

बाधाओं से क्या डरना

अरे! एक दिन है मरना

हमको कुछ परवाह नहीं!

 

ये सब छोटी बातें हैं

भय देने की बातें है

 पीछे लोटें वीर नहीं

पीछे मुड़ता तार यहीं?

हमको कुछ परवाह नहीं!

 

चले बहन धीरे अब तक

भला चलेगा यह कब तक?

आज मंगें मन भर लो!

वीर! तरंगों पर निर लो!

आज करो परवाह नहीं!

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