एक पड़ोसी मुल्ला नसरुद्दीन के द्वार पर पहुंचा | मुल्ला उससे मिलने बाहर निकले |
"मुल्ला क्या तुम आज के लिए अपना गधा मुझे दे सकते हो , मुझे कुछ सामान दूसरे शहर पहुंचाना है ? "
मुल्ला उसे अपना गधा नहीं देना चाहते थे , पर साफ़ -साफ़ मन करने से पड़ोसी को ठेस पहुँचती इसलिए उन्होंने झूठ कह दिया , "मुझे माफ़ करना मैंने तो आज सुबह ही अपना गधा किसी उर को दे दिया है |"
मुल्ला ने अभी अपनी बात पूरी भी नहीं की थी कि अन्दर से ढेंचू-ढेंचू की आवाज़ आने लगी |
"लेकिन मुल्ला , गधा तो अन्दर बंधा चिल्ला रहा है |", पड़ोसी ने चौकते हुए कहा |
"तुम किस पर यकीन करते हो |", मुल्ला बिना घबराए बोले , "गधे पर या अपने मुल्ला पर ?"
पडोसी चुप – चाप वापस चला गया |