नक़्श[1] फ़रियादी है किसकी शोख़ी-ए-तहरीर[2] का
काग़ज़ी है पैरहन हर पैकर[3]-ए-तस्वीर का
काव-काव[4]-ए सख़्तजानी[5] हाय तनहाई न पूछ
सुबह करना शाम का लाना है जू-ए-शीर[6] का
जज़्बा[7]-ए-बेअख़्तियारे-शौक़ देखा चाहिए
सीना-ए-शमशीर[8] से बाहर है दम[9] शमशीर का
आगही[10] दामे-शुनीदन[11] जिस क़दर चाहे बिछाए
मुद्दआ़ अ़न्क़ा[12] है अपने आ़लमे-तक़रीर[13] का
बस कि हूँ "ग़ालिब" असीरी[14] में भी आतिश-ज़ेर-पा[15]
मूए-आतिश-दीद़ा[16] है हल्क़ा[17] मेरी ज़ंजीर का
शब्दार्थ: