हुस्न ग़म्ज़े[1] की कशाकश[2] से छुटा मेरे बाद
बारे आराम से है अहले-जफ़ा[3] मेरे बाद
मंसब-ए-शेफ़्तगी[4] के कोई क़ाबिल न रहा
हुई मअ़ज़ूली[5]-ए-अंदाज़-ओ-अदा मेरे बाद
शमअ़ बुझती है तो उस में से धुआँ उठता है
शोला-ए-इश्क़ सियहपोश[6] हुआ मेरे बाद
ख़ूँ है दिल ख़ाक में अहवाल[7]-ए-बुतां पर यानी
उनके नाख़ुन हुए मोहताज-ए-हिना मेरे बाद
दरख़ुर-ए-अ़र्ज़[8] नहीं जौहर-ए-बेदाद[9] को जा[10]
निगह-ए-नाज़[11] है सुर्मे से ख़फ़ा मेरे बाद
है जुनूं अहले-जुनूं के लिये आग़ोश-ए-विदा
चाक़ होता है गिरेबां से जुदा मेरे बाद
कौन होता है हरीफ़[12]-ए-मै-ए-मर्द-अफ़गन-ए-इश्क़[13]
है मुकर्रर लब-ए-साक़ी में सला[14] मेरे बाद
ग़म से मरता हूँ कि इतना नहीं दुनिया में कोई
कि करे ताज़ियत[15]-ए-मेहर[16]-ओ-वफ़ा मेरे बाद
आये है बेकसी[17]-ए-इश्क़ पे रोना 'ग़ालिब'
किसके घर जायेगा सैलाब-ए-बला मेरे बाद